Tuesday, December 14, 2010

I still feel you!

 
That moment gone,
days are gone too,
Your sweet memories
still striking through,
We never knew when
enjoying together,
That we would
get apart this soon,
your sweet mumbling,
that cute glimpse of yours,
still amazed me for moments.
Doesn't matter if you
aren't with me right now,
I often hear you calling me,
I still feel your Hug,
I can see you dancing too.
I still cover my ears
for your screaming.
Tears get slid from eyes,
Whenever you come across
from those sweet memories!
 
- Dinesh Saroj

Wednesday, December 1, 2010

When I Needed...



When I needed
a Hand to hold,
I got loneliness...

When I needed 
a tender Poke,
I got none...

When I needed 
a generous Pat 
on my Back,
I got slapped...

When I needed 
Lovable Hug, 
I got cursed...

When I needed 
to share my anxiety
no-one cared to
Listen to me...

Besides all my 
Troubles and Loneliness
Sorrows and Emptiness
Failures and Mishaps; 

I always tried 
to make someone 
Happy and Enjoy, 
When I was not...

I Love laughing 
all the time, 
I laughed even 
more while in 
Deep Depression...

Things never Were 
favourable enough 
For Me, 
To Settle Down 
In my younger age...


But I always 
Strongly Believed in, 
my Fate and 
my strengths ... 
More of I always 
Believed that, 
my creator has 
some thing special for me...

And Now I believe 
Completely With 
the Optimism that
No matter Where 
Wind takes me 
with it's Blow,

I can achieve
whatever I desire for...
That's the my Gut feeling of Life...!

@ Dins'


छवि साभार : गूगल छवि

Friday, November 12, 2010

प्यार में नाम कर जाओगे

प्यार को न तौलो आंसुओं से,
.
जितना बहाओगे प्यार में तुम आंसू,

 .
उतना ही ज्यादा उसे सींचते जाओगे, 
.
करोगे जितना टूट कर मुह्हबत सनम से,
.
प्यार में नाम उतना तुम कर जाओगे |

" दिनेश सरोज " 



छवि साभार : गूगल छवि

Wednesday, November 3, 2010

शुभ दीपावली!!! - बाँटें खुशियाँ चहुँ-ओर...

दीपों कि जगमग,
रंगोली की चमक,
पकवानों कि महक,
अपनों कि झलक,
तमन्ना लिए पलक,
अँधियारा चीरती रोशनी,
कंदीलों कि जगमगाहट,
फूलझड़ीयों की चकाचौंध,
पटाखों के शोर,
बच्चों का अह्लाद,
मदमस्त सा कोलाहल,
प्रियजनों से मिलन,
भुला सारे उलझन,
उमंगों से भरें जीवन,
तेरे-मेरे का भेद बिसर,
भुला मजहबी भेद,
गले मिलें एक हो,
बाँटें खुशियाँ चहुँ-ओर,
इन खुशियों के बिच,
न भूले उन्हें,
हैं जिनके ऋणी,
जो अपनों से दूर,
बैठे हैं सरहदों पर,
औ' हैं जो यतीम,
हैं फिर भी चहकते,
कर इक छोटा-सा यत्न,
संभाले रखें उनकी चहक,
दीपों के वन्दनवार में,
इस दिल की पुकार से,
कर तुम्हें नमन,
कहता हूँ सभी को,
शुभ दीपावली!!!



- दिनेश सरोज

 छवि साभार: गूगल छवियां

Tuesday, November 2, 2010

तेरी याद!

हर वो पल लगे जैसे गुजरा बस अभी,
जब तू मेरी उंगली थामे फिराता मुझे,
मुझे अपने बाँहों में समेटे रहता,
घोड़ा बन मुझे घुमाता इधर-उधर,
फिर झट से अपने कंधे पर बिठा लेता,
तेरे छुवन का अहेसास अब भी -
महसूस होता है मुझे अक्सर |

अब भी रुलाता है जोरों से मुझे,
तेरा समंदर में डुबकी लगा -
डूबने का अभिनय करना,
तेरी मीठी आवाज कि गुंजन,
मुझे सम्मोहित अब भी करती है,
तेरे रटाये पहाड़ों को मैं,
दोहराता हूँ आज भी कभी-कभी |

अब भी सिहर-सा उठता है,
तेरी डांट से बदन मेरा,
तेरी पुकार पर नजर मेरी,
तुझे पास ही कहीं ढुं
नें लगती है,
तेरी याद रातों को अक्सर,
अब भी जगाये रखती है मुझे,
आता हूँ मिलने तुझसे अब भी,
तेरे घुमाये उन जगहों पर |

तेरी मुस्कान अब मैं अपने,
होंठो पर सजाये रखता हूँ ,
तेरी हँसी का पिटारा यहाँ-वहां,
अब मैं ही बिखेरता रहता हूँ,
ओढ़े रहता हूँ तेरा वो अक्कड़पन,
तेरे दिखाए सपनें देखता हूँ,
अब भी मैं अक्सर रातों में,
तुझी से सीखे अंदाज में,
 

मैं जीवन जीने का आनंद लेता हूँ |

- तेरा- दिनेश 

छवि साभार: गूगल छवियां 

Friday, October 29, 2010

Try or Cry

We all have our wisdom,
for an extent or other,
adding others to it I feel,
only improves and bestows,
what we already have.

For I share only things,
I feel Might help you,
to improve your vision,
to enlighten your path,
elude do not to take it, or,
You might feel empty inside.

Take what I am giving,
And if you don't need it,
Wait... don't trash it.
Give it to some one else,
You know might need it,
or rather throw it back to me.

Remain you if sceptic to it,
It blossoms you nothing.
so I urge you give it a try,
better to later go and cry.

- Dinesh Saroj 

छवि साभार: गूगल छवियां 

Friday, October 15, 2010

आस! इक मिलन कि...

 
दिल्लगी न कर सके कभी,
ना हम कोई खता ही कर सके,
खुमार तो चढ़ा था बहुत पर,
हम तो दिवानगी भी न कर सके|

बेचैन हुए तो खूब फिर भी,
आवाज उन्हें न लगा सके,
कहने को उनसे -
मन में गढ़ी बातें भी ढेरों,
कुछ भी तो उनसे कह न सके|

नज़रें टकराई तो कई बार,
पर नज़र हम मिला न सके,
वो तो खिल-खिलाये -
कई दफा मगर,
हम तो मुस्कुरा भी न सके|

कुछ कदम चले भी इक राह,
इस पर भी हमराह उन्हें -
बना न सके,
आये थे बेहद करीब भी कभी,
पर बात दिल कि कह न सके|

गम करना चाहते थे कभी -
न मिल पाने का उनसे,
फिर मिलने कि इक -
आस के चलते,
कमबख्त वो भी न कर सके|

दिनेश'

छवि साभार: गूगल छवियां 

Friday, October 1, 2010

जय बोलो रे बोलो हिन्द की!


ना मुहम्मद कि, ना गोविन्द की,
जय बोलो रे बोलो हिन्द की!

ना राग में ना द्वेष में,
यकीं है हमें हमारे परिवेश में,
गेरुआ हो या हरित,
नहीं ये रंग मतभेद के,
तेरी मीनारें, हैं मेरी दीपशिला,
इन बातों से अबतक हमें क्या है मिला!

ना मुहम्मद कि, ना गोविन्द की,
जय बोलो रे बोलो हिन्द की!

अरे राम में है छिपा 'मरा',
अल्लाह में है देखो 'हल्ला(अ)',
क्यों पड़ें इन शब्दों के फेर में,
जिसने हमें कुछ भी तो न दिया,
दिया है तो बस मौतें बेटे-भाइयों की,
चीखें माँओं की, मांगें उजड़ी बहनों की!

ना मुहम्मद कि, ना गोविन्द की,
जय बोलो रे बोलो हिन्द की!

दिनेश'

Sunday, July 25, 2010

When we love some one


 When we love some one,
it's wise to act to fulfill -
our own emotional desire,
Not to please loved ones,
or for just formalities.
Love never demands -
any favour,
but love!

@ Dins'

Saturday, May 29, 2010

Oh baby you so ignorant of me...

When I saw you after a long again,
Fading Memories started to regain,

Your sudden glance for a while,
Made for me a pleasant smile,

I am Happy because you are so,
When I see you smile my face glows,

You seldom come and soon flee,
Oh baby you so ignorant of me...


- Dins'

Wednesday, May 19, 2010

तेरी उस इक झलक नें हमें,
नई कोई राह दिखा दिया,

जिंदगी से भागते फिरते रहे,
नई इक आस जगा दिया,

कहीं मेहरबान मुझ पर,
अब फिर से खुदा तो नहीं,

पहले दिल में मेरे और अब,
तुम्हें मेरी आगोश में ला दिया!

@  दिनेश सरोज

Thursday, April 22, 2010

मैं रिक्शावाला


पहुंचाऊं साहिब कहो जहाँ तुम,
बस रहो बैठे सीना तान,
सवारी रहेगी ये बड़ी सुहानी,
जब तक है मुझमें प्राण,
धुप चिलमिलाये, धुल उड़े,
छलकती रहे फिर चाहे स्वेद-कण,
नहीं थकेंगे, हम खींचते रहेंगे,
आये ना जब तक मक़ाम,
चक्कर है जग का देखो अनोखा,
खींचे इक को दूजा कोई इंसान!

- दिनेश सरोज

Saturday, April 10, 2010

शिकायत क्यों है जिंदगी से


ये शिकायत क्यों है जिंदगी से,
                        जिंदगी बेरहम तो नहीं,
 

मुश्किलें तो सभी की जिंदगी में है,
                            तू अकेला गमगीन तो नहीं,


मौसम के चक्र-सा है ये जीवन,
                                 सुख-दुःख  का पहिया चलता ही है,
 

कोई नहीं जग में जिस पर से  ,
                                 समय-चक्र का पहिया गुजरा नहीं,
 

बस  इक आशाओं के दीप धरे ,
                           तू इस पथ पर यूँ ही बढ़ता जा,
 

कालिख से न भाग रे बन्दे ,
                                     बस ये दीप संभाले दौड़ा जा,
 

नहीं जोर है किसी तिमिर में,
                                   कि तेरी लौ बुझा सके जो,
 

नहीं शोर है किसी गर्जन में,
                                  कि तेरी पुकार दबा सके वो,
 

नहीं थकेगा जो तू ठाने चले,
                            अपनी राह मौजों के संग,
 

कोई फ़िक्र न कर तू बन्दे,
                                     तेरा सफ़र अधुरा न रहेगा,
 

कोई नहीं जो तू आज है अकेला,
                              तन्हाई सारी रात ना रहेगा,
 

सिर्फ तेरा ही दुःख नहीं अकेला,
                                         
नज़र तू अपनी क्यों है झुकाता ,
 

सिस उठाये जोर लगाये हर पल,
                                      चलाचल यूँ ही बन मतवाला,
 

तेरा अथक श्रम, निरंतर कर्म ही,
                                           लाएगा जीवन में तेरे उजियारा, 


तू ना कर शिकायत जिंदगी से,
                                    यही पहनाएगी तुझे विजयश्री माला...!


- दिनेश सरोज

Friday, April 9, 2010

तू फिकर कर अपनी, अपने नस्लों की...




हिन्दू, मुस्लिम, सिख औ' ईसाई,
          अल्पसंख्यक, आरक्षण, जातिवाद,
           वोट बैंक की फिकर बड़ी,
                मुझे ईमान-धरम की क्या पड़ी!

मेरी कुर्सी, मेरा ओहदा,
            मुझको तो बस यही है प्यारी,
                     भुकमरी, गरीबी या हो भ्रष्टाचार,
              तेरा हाल तू खुद ही विचार!

चल-अचल संपत्ति क्यों न हो,
           कतल का मुझपे दफा ही क्यों न हो,
             नीति, नियति पर सदा रहूँगा भारी,
            आप ने चुना लो आपका आभारी!

पर करूँगा वही जो मुझ-मन-भाये,
अरे देश की फिकर किसे सताए,
दीवारों के भी कान बड़े है,
         नाहक क्यों मेरा मुंह खुलवाये!

कबीर, नानक, रहीम औ' साईं,
    आये जाने कितने पीर-गोसाईं,
          वो राजकाज का मर्म बदल न सके,
          तो तू क्यों मुझपे नाहक तान कसे!

तेरी तो लगे है घोर सामत आई,
         इतनी जुर्रत की मांगे मुझसे सफाई,
       रहमो करम पर है मेरे ही ये देश,
               लगा दे मुझ पर चाहे कितने भी क्लेश!

तू फिकर कर अपनी, अपने नस्लों की,
मेरी तो कई-कई पुश्त तर जाएँगी,
  मौका जो दिया है तुमने ये मुझको,
       मेरी हर पुश्त तुम्हारा ही गुण गायेंगी!

- दिनेश सरोज

Monday, March 1, 2010

होली की ढेरों शुभ कामनाएं!!!


हर कोई चाहे आज भीगना-भिगाना,
गली-गली घूम मिलना सबों से,
टोली बनाना अलबेलों की और,
अबीर उड़ाना, गालों पर रंग लगाना!

न चाहे कोई भीगना रंगों में तो,
गले मिल उनसे हंसी ख़ुशी,
गालों पर थोडा  गुलाल लगाना,
माथे पर टीका कर प्रेम बढाना!

रपट किसी को मिल सब एक हो,
झपट किसी को मिल सब एक हो,
फिर फेंकना रंगों भरे कुण्डों में,
 फिर लगाना ठहाका एक टंकार हो!
 
हरा-नीला, लाल-पिला, सुनहरा,
सभी रंगों से भर दें आज आसमान,
अपने पराये का कहीं भेद न हो,
गूंजे 'बुरा न मानों होली है' का नारा!

आज न कोई शिकायत, न कोई ग्लानि,
बस करने दें सब को अपनी मनमानी,
होली का दिन है ही भुला सब पिछली बीती,
कर जाएँ सभी जनों का जीवन सतरंगी!

सभी को होली की ढेरों शुभ कामनाएं!!!




- दिनेश सरोज

Saturday, February 27, 2010

Be Optimistic


Only
PAIN can 
Tolerate
Injuries,
Medicines not.
Injuries are
Soothed by Medicines, but 
Tolerance 
Initiates the Proccess of 
CURE.

I sum it up as  - "BE OPTIMISTIC".

@ Dins'

Wednesday, February 10, 2010

Life: a precious Gift!

Life is a precious Gift to us,
We should have to preserve it.
Life is full of Joy & Fun,
with others we must enjoy it .
Sometime there are Sorrows,
We need to wash-out them.
Life is to give others,
and never expect in return ...


The Life we got is very precious,
regardless of the ups and downs,
The ups and downs -
are the waves of ocean,
and without those Waves,
an ocean won't be an Ocean,
Right!?

That's the LIFE
So LIVE it Proudly & Gracefully !

@ Dins'

Saturday, January 30, 2010

What makes one happy?


Money...; I think no.
There are many who
spent whole life in poverty,
but still are happy within!

Love...; maybe not.
There are some full of
hatred for whole life,
And Happy living with it!

Dream...; think it again.
Does persons blind by birth
can experience it at all?
They live happily without it!

Success...; what defines it?
What seems Success to one,
Means nothing to others,
It is relative from person to person!

Spirituality...; really, is it?
Think of nonreligious persons,
they have their own beliefs,
Quite Happy they are with it!

Comfort...; no it's so not.
Look at hardworking
Farmers, Labours, soldiers,
They can't be happy
without discharging their duties!

Popularity...; Hmmmmm.
Nearly 99% of the world
populations are commoner,
The most are happy-go-lucky!

Happiness shall not be searched
elsewhere; it lies within one's self!

@ Dins'

Friday, January 29, 2010

जीवन में हार तभी मानना ...

जीवन में हार तभी मानना जब -

अँधेरी घनी रात के बाद,
सूर्य ने रोशनी न बिखेरा हो!

ज्येष्ठ की तपती गर्मी के बाद,
बादलों ने धरा को न भिगोया हो!

घनघोर अकाल के बाद -
धरती से फिर कोई बीज,
कभी अंकुरित ही न हुआ हो!

आंधी में घरोंदा उजड़ने पर भी,
पंक्षी ने फिर घोसला न बांधा हो!

चट्टानों से टकरा चूर होकर भी,
लहरें फिर किनारे ना आयी हों!

बच्चा पहली बार खड़ा होने की -
कोशिश में बार-बार गिरकर भी,
कोशिश करना छोड़ दिया हो!


@ Dins'

Tuesday, January 26, 2010

क्यों कर मनाएँ गणतंत्र दिवस???

क्या कोई बताएगा मुझे की क्यों कर
मनाएँ गणतंत्र दिवस?


जबकि कहीं भी नजर नहीं आता कोई तंत्र -
जो संचालित हो रहा हो हर एक गण-गण से,
हाँ! कहने को तो प्रतिनिधि हमनें ही भेजे है,
एक-एक जोड़ कर बहुमत से विजयश्री किये हैं,
और वे तो प्रति-जन मानस के हित बिसराकर,
अपने लिए ही निधि जुटाने में व्यस्त हो गए हैं,
यक़ीनन वे प्रति-निधि भी इसीलिए कहलाते हैं,
क्योंकि, प्रति जनमानस की निधि उनके ही,
कई तिजोरियों में जाकर कैद हो जाती है,
हम ठीक से जानते भी नहीं अपने संवैधानिक अधिकार,
नहीं समझते अपने संवैधानिक कर्तव्य,
हैं मनाते फिर भी गणतंत्र दिवस हर साल...!


क्या कोई बताएगा मुझे की क्यों कर,
मैं कहुं शुभ गणतंत्र दिवस?


जबकी देश का गण-गण भुखमरी, मुफलिसी,
असुरक्षा, भ्रष्टाचार एवं हिंसा इत्यादि से दुखी है,
जहाँ हर गण में भेद भाव के बीज अंकुरित करने,
की कोशिश सारे चरम तक पर कर गयी हो,
जहाँ स्त्री का नारीत्व रसुकवालों की गिरफ्त में हो,
बच्चों का किसी न किसी रूप में शोषण होता हो,
देश के शहीदों को भी उचित सम्मान न मिल रहा हो,
उनके विधवा एवं परिवार को मुआवजा न मिल रहा हो,
जहाँ हर राज्य खुद को देश से अलग कर देख रहा हो,
केंद्र राज्यों का बंटवारा करने में जुटा हो,
नहीं उठाते हम कोई जागरुक कदम विरोध में,
हैं मनाते फिर भी गणतंत्र दिवस हर साल...!


फिर भी आप सुनना ही चाहते हैं तो चलिए,
आप सभी गणों को गणतंत्र दिवस की शुभ कमाना!!!


~~~~~~~~~~~~~~
- दिनेश सरोज

Sunday, January 24, 2010

ज़रा सोचें!!!

हम मनुष्य कर रहे सदियों से-
पालनहार प्रकृति से खिलवाड़!

कभी-कहीं बाँधते अल्हड़ नदी की धार,
तो कहीं करते विशाल वृक्षों पर वार,
यहाँ तक की पर्वतों को भी दिया उखाड़!

जहाँ पनपते कुकुरमुत्ते, भंवरों के छत्ते,
और बसते चुल-बुली चिड़ियों के घरोंदे,
वहां खड़े हैं सैकड़ों गगनचुम्बी इमारतें!

बेचारे पंछी भी देखो हो रहे हमसे पस्त,
जंगल हुए नष्ट, असहाय जानवर भी त्रस्त,
क्योंकि हम फैला रहे सर्वज्ञ अपना ही साम्राज्य!

जुटाने में लगे है एसो आराम के सारे सामान,
घरों में तो कर लिया बर्फ ज़माने का प्रावधान,
पर कभी सोचा क्या होगा हिमालय का अंजाम?

अजी, ये कैसी प्रगती कर रहे है हम जरा सोचें,
अपने ही अंतरात्मा में इन सवालों का जवाब खोजें,
इस विकसीत युग में भी क्यों है हमें महाप्रलय का डर???

@ Dins'