Monday, November 14, 2011

Wednesday, October 26, 2011

शुभ दीपावली



टिमटिमाते लौ की तरहा,
तुम्हारे जीवन में 
रोशनी भरी रहे...!
दीपों की जगमगाहट से,
जैसे दिवाली में
दूर होता है 
अमावस का अँधियारा |
दुःख जो घेरे है तुम्हें
छट जाए वो सारा |
अपने दिलों में उमंग भर
बाँटो उन्हें सभी के संग...!
रंगोली के रंगों की तरहा
तुम्हारे घर-आँगन में 
खुशियों के भर जाये रंग |
दीपावली के दियों सा बन
चहुँ और फैलाएँ शुभ उजियारा...!

सभी को दीपावली की शुभकामना...!!!
Wishing you all Warm regards of 
Auspicious Deepawali...!

~ Dinesh Saroj

Tuesday, October 25, 2011

Come to me...!


Saturday, October 1, 2011

Dear Love



छवि साभार: गूगल छवि

Thursday, September 29, 2011

The Rose


छवि साभार: गूगल छवि 

Wednesday, September 28, 2011

What is Love...?

छवि साभार: गूगल छवि 

Monday, September 26, 2011

तेरी दीवानगी

छवि साभार: गूगल छवि 

Friday, September 16, 2011

Sunday, August 7, 2011

सिमटी रहे तू मुझमे



यूँ ही रहना इन बाँहों में,
न जाना दूरकहीं, मेरी 
सोहबत की छाँव से,
न होना दूर कभी |

कि बसती है तू ही 
इन निगाहों में, मेरी  
धड़कन भी है तू ही, 
कोई और नहीं |

मीठा सा अहसास तेरे 
स्पर्श का ओ सनम,
कभी न छूटे साथ तेरा,
सिमटी रहे तू मुझमे यूँही |


- दिनेश सरोज



छवि साभार: Salina Trevino

Saturday, July 30, 2011

ये जो यादें होती हैं, बचपन की

वो बातें बड़ी सुहानी होती हैं,
जिनमे बचपन की
मधुर कहानी होती है |

वो आती हैं याद कुछ
ऐसी महक लेकर,
फिर चली जाती हैं,
मीठा-मीठा सा
प्यारा अहसास देकर |

ये जो यादें होती हैं,
बचपन की, लड़कपन की,
बिन फूलों, बिन गुलदस्तों के,
महका जाती है
बगिया जीवन की|

सच वो बातें बड़ी
सुहानी होती हैं,
जिनमे बचपन की
मधुर कहानी होती है |

- दिनेश सरोज

 छवि साभार: गूगल छवि 

Thursday, July 21, 2011

मुंबई लोकल

न होगी फिकर तुझे
तेरी जिंदगी की,
तो कोई बात नहीं |

पर चिंता उन्हें तेरी जरुर होगी,
जिन्हें तू घर भूल आया है |

लटकते रहे यूँ ही तो,
जिंदगी भी तेरी लटकती रहेगी |

तेरे चले जाने के बाद,
तेरे अपनों की जान फिर
ताउम्र तड़पती रहेगी |

जी ले जी भर कर संग
अपनों के, कौन जाने
ये जिंदगी फिर रहे न रहे |

- दिनेश सरोज
 छवि साभार: गूगल छवि 

Monday, July 18, 2011

मेरी नजरें


अब भी नहीं थमा,
वो तेरी और मुड़ जाना
मेरी नज़रों का,

तुझे देखते ही नजरें 
मेरी अब भी
मचल जाती हैं,

फर्क सिर्फ इतना सा है
तब पलकें उठ-उठ कर
तुझे देखा करती थीं,

अब इन आंसुओं को
छुपाने का सब से
जतन किया करती हैं...!

- दिनेश सरोज

Friday, July 15, 2011

स्वछंद हो, निर्भय हो उड़ सकूँ...





स्वछंद हो, निर्भय हो उड़ सकूँ,
इस विशाल आकाश औ'
हरित वसुंधरा के बीच,
बस यही तो सोचा था हमने...

फिर सकूँ इन वादियों में,
जी चाहे जहाँ तक, जब तक,
कहीं मुझे कोई रोक-टोक न हो,
संग जुड़े मेरे, जो भी चाहे बिना झिझके...

मेरी बोली, मेरे पहनावे, मेरी रंगत से,
कोई न डरे, न सहमे, न सकुचाये,
कोई गली-मोहल्ला, कोई चौराहा या बाज़ार,
किसी खास तबके का होकर न रह जाये...

दो पल क्यों न सुकून से हम जिएं,
जब कभी राह चलते प्यास लगे,
जो घर सामने पड़े वहाँ पानी पीनें से,
हमारा धर्म, जाती, सोच हमें न रोके...

- दिनेश सरोज


छवि साभार: गूगल छवि 

Wednesday, July 6, 2011

जो उनके मदहोशी में खोये न होते कभी...!



महसूस न किया होता अपने
दिल की धडकनों को कभी,
उनके दिदार ने धड़कनों को
जो कभी रोका न होता,

बढ़ चले होते संग
कारवां के हम भी,
जो उनके मदहोशी में
खोये न होते कभी...!

- दिनेश सरोज

छवि साभार

Saturday, July 2, 2011

नन्हा-सा बच्चा...!


तन्हाईयों से थे अनजान जब,
कभी न रहती रातें वीरान तब,
निश्चल सा होता मन 
कोई चेहरा न होता बंद आँखों में,
आगोशी  का अर्थ तब छिप 
जाना माँ के आँचल में होता,
होती थी इक अजब-सी मिठास 
जब चूमती बहनें गालों को,
भाइयों से झगड़ना कभी
स्वाभिमान पर चोट न होता,
दारासिंग से कोई टक्कर ले सकता 
था तो वो सिर्फ मेरे पापा होते,
मिल जाते कभी किसी से दस पैसे
तो जिंदगी उमंगों से भर जाती,
दसों उँगलियों में होती नल्लियाँ
और भाई-बहनों को ललचाने 
की बारी अब हमारी होती,
नई किताबों की खुशबू और बारिश में 
मिट्टी की भीनी-भीनी महक से 
मानों जीवन सार्थक-सा हो जाता,
दोस्तों का अर्थ उस समय 
होता सारा मोहल्ला और 
पूरी-की-पूरी कक्षा,
ये वो किस्सा है जब मैं था 
इक छोटा-सा, प्यारा-सा 
नन्हा-सा बच्चा...!

- दिनेश सरोज


छवि साभार: गूगल छवि 

Monday, June 27, 2011

इक खुशबू की तलाश में...!


जब थी हसरतें इस दिल में 
ज़ानिब उनके आगोश की,
उड़ती रही वो तितली बन 
महकते फूलों की दरकार में|


हम होश संभाले बैठे ही थे 
कि पतझर का मौसम आया,
देखा फिरते बदहवास उन्हें 
किसी खुशबू की तलाश में|


- दिनेश सरोज
छवि साभार: गूगल छवि 

Thursday, June 2, 2011

पहली बारिश



वो भीनी-भीनी महक मिट्टी की,
वो छन-छन करती बुँदे बारिश की,
चकाचौंध करती गरजती बिजली,
वो बहती हुई सरसराती हवाएं,
झूमते बच्चे पहली बारिश में,
उल्लास, उन्माद से भरा माहौल,
वाह,क्या खूब आनंद है पहली बारिश का...!

- दिनेश सरोज

छवि साभार: गूगल छवि 

Wednesday, June 1, 2011

Sometimes...!



Sometimes people :

have a lot to say, 
but remain silent.
have a lot to share, 
but remain closed.
nearly broke to cry, 
but manage to hold on.
want to dance like crazy, 
but control temptation.
feel to fly high in the sky, 
but alas they lack the wing.


- Dins'

Image Source: Google Images

Thursday, May 19, 2011

What is...?


What is Life?
Mystery of future
or History of Past.
or Being a Present.

What is Dream?
Dreaming someone
or Being someones Dream.

What is Love?
Being together
or Being for each other.

- Dins'

छवि साभार : गूगल छवि

Monday, January 24, 2011

वफ़ा की मूरत...!

थक के न हार ऐ मुसाफिर,
यूँ बैठ जाने से मंजिल न मिलेगी | 

टूटे हुए कांच के टुकड़ों में,
तुझे सूरत ठीक से न दिखेगी |

तू यूँ ही रोता रहा गर'
किसी की बेवफाई पर,
तो रुन्धाई आँखों से
वफ़ा की मूरत न दिखेगी | 

- दिनेश सरोज
छवि साभार : गूगल छवि

Thursday, January 6, 2011

हरकतों पे हरकतें

हरकतों को नज़रअंदाज़ करते रहे हम,
वे हरकतों पे हरकतें करते ही रहे,
हमने भी तय कर लिया था सहते रहेंगे,
कुछ ना कहेंगे हरकतों को उनके,
वे भी ज़ालिम थे बड़े जुनूनी ऐसे,
अपनी हरकतों से बाज़ ना आए कभी,
जान चुके थे की हमने है ज़िद ठानी,
चुप रहने की, कुछ ना कहने की,
अब उनकी हिम्मतों को तो जैसे,
पर ही लग गया हो, वो उड़ने लगे अब तो,
और हरकतों को भी अपने हवा, लगे देने,
महारत हासिल कर ली हरकतें करनें की,
अब तो वे खुद को तीस-मार-खाँ और हमें,
ऐरा-गैरा उठाई-गिर समझने लगे,
हमने सोचा चलो छोड़ो यार अब तो,
इनके हरकतों के आदी हो चले हम भी,
फिर यूँ ही इक दिन हमने सोचा के चलो,
कुछ हरकतें हम भी क्यूँ ना कर लें,
तो हम भी हो गए शुरू और यकीं मानिए,
जो हमने की शुरूआत हरकतों की तो,
अजी तोते-पे-तोते उड़ने लगे जनाब उनके...!

- दिनेश सरोज

 छवि साभार : गूगल छवि

Monday, January 3, 2011

वफ़ा की उम्मीद

याद उनकी जिन्दा रखी है हमने अब भी,
उफ़नते सिने की ज्वाला से बचा कर,
तक़दीर ने छिनना चाहा उन्हें हमसे,
हर टूटती सांस से, बांधे रखा उन्हें हमने,
आरज़ू तो न हुई पूरी पाने की उसे,
फिर भी आस का सिलसिला टूटनें न दिया,
बेवफा भी तो न कह सकेंगे हम उन्हें,
हमसे ही, देर हुई बातें दिल की कहने में,
वफ़ा की उम्मीद तो तभी कर सकते थे हम,
जब जिंदगी में कभी उनके हो पाते...!

- दिनेश सरोज

छवि साभार : गूगल छवि