Friday, October 29, 2010

Try or Cry

We all have our wisdom,
for an extent or other,
adding others to it I feel,
only improves and bestows,
what we already have.

For I share only things,
I feel Might help you,
to improve your vision,
to enlighten your path,
elude do not to take it, or,
You might feel empty inside.

Take what I am giving,
And if you don't need it,
Wait... don't trash it.
Give it to some one else,
You know might need it,
or rather throw it back to me.

Remain you if sceptic to it,
It blossoms you nothing.
so I urge you give it a try,
better to later go and cry.

- Dinesh Saroj 

छवि साभार: गूगल छवियां 

Friday, October 15, 2010

आस! इक मिलन कि...

 
दिल्लगी न कर सके कभी,
ना हम कोई खता ही कर सके,
खुमार तो चढ़ा था बहुत पर,
हम तो दिवानगी भी न कर सके|

बेचैन हुए तो खूब फिर भी,
आवाज उन्हें न लगा सके,
कहने को उनसे -
मन में गढ़ी बातें भी ढेरों,
कुछ भी तो उनसे कह न सके|

नज़रें टकराई तो कई बार,
पर नज़र हम मिला न सके,
वो तो खिल-खिलाये -
कई दफा मगर,
हम तो मुस्कुरा भी न सके|

कुछ कदम चले भी इक राह,
इस पर भी हमराह उन्हें -
बना न सके,
आये थे बेहद करीब भी कभी,
पर बात दिल कि कह न सके|

गम करना चाहते थे कभी -
न मिल पाने का उनसे,
फिर मिलने कि इक -
आस के चलते,
कमबख्त वो भी न कर सके|

दिनेश'

छवि साभार: गूगल छवियां 

Friday, October 1, 2010

जय बोलो रे बोलो हिन्द की!


ना मुहम्मद कि, ना गोविन्द की,
जय बोलो रे बोलो हिन्द की!

ना राग में ना द्वेष में,
यकीं है हमें हमारे परिवेश में,
गेरुआ हो या हरित,
नहीं ये रंग मतभेद के,
तेरी मीनारें, हैं मेरी दीपशिला,
इन बातों से अबतक हमें क्या है मिला!

ना मुहम्मद कि, ना गोविन्द की,
जय बोलो रे बोलो हिन्द की!

अरे राम में है छिपा 'मरा',
अल्लाह में है देखो 'हल्ला(अ)',
क्यों पड़ें इन शब्दों के फेर में,
जिसने हमें कुछ भी तो न दिया,
दिया है तो बस मौतें बेटे-भाइयों की,
चीखें माँओं की, मांगें उजड़ी बहनों की!

ना मुहम्मद कि, ना गोविन्द की,
जय बोलो रे बोलो हिन्द की!

दिनेश'