Thursday, February 26, 2009

~: फुरसत कहाँ :~

गुजर जाते थे लम्हों-पे-लम्हें '
हमें वक्त का अंदाज़ ही चलता था,
पर अब है फुरसत कहाँ जो हम,
वक्त निकालें यारों खातिर|
तब होती थी गुफ्तगू अक्सर -
दिन कट जाते थे बातों ही बातों में,
अब तो महीनों-महीनें गुजर जाते हैं,
'हमें फुरसत नहीं पल भर भी-
यारों से एक मुलाक़ात का|


@ Dins'

Sunday, February 15, 2009

दिल में है आज भी तेरी याद !

हैं यादें उसकी जहन में मेरे -
आज भी बसी कहीं|
है पकड़ उसके बाँहों की -
आज भी मेरे आगोश में|
है पड़ती सुनाई मुझे -
अब भी कहीं,
उसकी मीठी आवाज|
पर नजर नहीं आती कहीं -
उसकी वो हसीं मुस्कान|
उसकी शरारत को मैं -
तरसता सा हूँ अक्सर|
ख्वाबो में मेरे हर रात -
आते हैं मंजर,
जो गुजरे थे उसके साथ|
भाई जान ले -
इस दिल में मेरे है बरकरार,
आज भी तेरी याद !

@ Dins'

Saturday, February 14, 2009

अपने-पराये!

मैं मजबूर तो नहीं, लेकिन,
पर हाँ, जरूरतमंद हूँ शायद|
इस बेगैरत दुनिया में,
मैं गैरतमंद हूँ शायद|
मुझे नहीं है आस -
किसी के साथ की,
इन राहों पर चलना -
अकेले,
मैंने सिख लिया है अब|
वो जो अपने थे,
बहुत खास थे,
आज रखते हैं सम्बन्ध -
तो बस व्यवहार भर के लिए|
पराये तो बदले, पराये थे -
वो अब भी पराये ही हैं|
किन्तु, जो अपने थे कभी -
अब, वो पराये से लगने लगे हैं|
इस संसार में आये थे अकेले,
और अकेले ही तो जाना है|
औ' यहाँ जो मिले-बिछडे सबसे,
यही तो यहाँ का फ़साना है|

@ Dins'