Sunday, January 24, 2010

ज़रा सोचें!!!

हम मनुष्य कर रहे सदियों से-
पालनहार प्रकृति से खिलवाड़!

कभी-कहीं बाँधते अल्हड़ नदी की धार,
तो कहीं करते विशाल वृक्षों पर वार,
यहाँ तक की पर्वतों को भी दिया उखाड़!

जहाँ पनपते कुकुरमुत्ते, भंवरों के छत्ते,
और बसते चुल-बुली चिड़ियों के घरोंदे,
वहां खड़े हैं सैकड़ों गगनचुम्बी इमारतें!

बेचारे पंछी भी देखो हो रहे हमसे पस्त,
जंगल हुए नष्ट, असहाय जानवर भी त्रस्त,
क्योंकि हम फैला रहे सर्वज्ञ अपना ही साम्राज्य!

जुटाने में लगे है एसो आराम के सारे सामान,
घरों में तो कर लिया बर्फ ज़माने का प्रावधान,
पर कभी सोचा क्या होगा हिमालय का अंजाम?

अजी, ये कैसी प्रगती कर रहे है हम जरा सोचें,
अपने ही अंतरात्मा में इन सवालों का जवाब खोजें,
इस विकसीत युग में भी क्यों है हमें महाप्रलय का डर???

@ Dins'

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