भटकती रहती है नजरें जाने किसे ढुंढने को,
और एक वो है कि कोई इशारा ही नहीं करता !!!
इंतेहां ले रहा है जाने कब से हमारे सब्र का,
वो बेदर्द है इतना की हमें दीदार ही नहीं देता !!!
थक तो गई है जरुर मेरी आँखें ए दोस्त,
उनसे मिलने की चाहत अब भी बरकरार है !!!
चाहे लाख तड़पाये वो हमें अपनी चाहत में,
हम अपना हौसला कभी ना छोडेंगे,
उन्हें पाकर ही ये दम तोडेंगे !!!
उन्हें पाकर ही ये दम तोडेंगे !!!
उन्हें पाकर ही ये दम तोडेंगे !!!
@ Dins'
Sunday, December 28, 2008
चाहत !!!
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