Sunday, December 28, 2008

अपने बन्दों पर कुछ तो रहम कर!


ऐ खुदा इतना तो करम कर,
तू अपने बन्दों पर कुछ तो रहम कर!
करते हैं सजदे तेरे दर पर सदा ही,
तू अपने बन्दों का दुःख कुछ तो कम कर!

हर कदम, हर घड़ी, क्यों लेता है तू बता -
हम बन्दों के सब्र का इस कदर इम्तिहाँ!
डगमगाते नहीं फिर भी कभी हमारे कदम,
तू अपने बन्दों पर कुछ तो कर रहम!


किसी को दिया अपार शक्ति, समृद्धि , सत्ता -
उन्हें है फिर भी कुछ और की लालसा!
और हैं कई ऐसे भी जो तरसते हैं हर दिन -
सोते हैं रातों को एक जून रोटी और कपडे बिन!

डुबे रहते हैं कुछ शबाब औ' कबाब में रात भर,
और कई के होते हैं नींदें हराम -
इस कदर मुफ़लिस में जाग कर!
डगमगाते नहीं फिर भी कभी हमारे कदम,
तू अपने बन्दों पर कुछ तो कर रहम!

क्यूँ कर देता है इतना लाचार जीवन में,
के, जीना पड़ता है औरों के रहमो-करम पे!
भेज कर कुछ बन्दों को हरित-वसुंधरा पर,
निरर्थक सा फिर, क्यों कर देता है अनमोल जीवन!

तेरे दर पर आकर नवाजते हैं सभी अपना सिष,
तो क्यों नहीं देता तू उनको मन-माँगा आशीष!
डगमगाते नहीं फिर भी कभी हमारे कदम,
तू अपने बन्दों पर कुछ तो कर रहम!

- दिनेश सरोज'


छवि साभार: गूगल छवि

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