रब जाने कौन है वो !
मदभरी खुशबू-सी है आती,
जब जहन में है आते वो !
अरे! ये कैसी तरंग है फ़िज़ाओं में,
सिर्फ उन्हीं का अह्सास होता है !
दिल जान से हैं चाहते उन्हें हम फिर भी,
ना जाने क्यों वो हमें तड़पाता है ! ! !
@ Dins'
मेरी रचनाएँ
भटकती रहती है नजरें जाने किसे ढुंढने को,
और एक वो है कि कोई इशारा ही नहीं करता !!!
इंतेहां ले रहा है जाने कब से हमारे सब्र का,
वो बेदर्द है इतना की हमें दीदार ही नहीं देता !!!
थक तो गई है जरुर मेरी आँखें ए दोस्त,
उनसे मिलने की चाहत अब भी बरकरार है !!!
चाहे लाख तड़पाये वो हमें अपनी चाहत में,
हम अपना हौसला कभी ना छोडेंगे,
उन्हें पाकर ही ये दम तोडेंगे !!!
उन्हें पाकर ही ये दम तोडेंगे !!!
उन्हें पाकर ही ये दम तोडेंगे !!!
@ Dins'
भूल नहीं सकता कभी कोइ,
-अपने दिल-ए-गुलज़ार को,
-उनके नशिली आवाज़ को,
-उनके मासूम इकरार को,
-उनके हंसी अन्दाज़ को,
-उनके प्यारी मुश्कान को,
-उनके सुहाने एह्सास को,
-उनकी बलखाती चाल को
भूल नहीं सकता कभी कोइ,
अपने आशिक-ऎ-खयाल को..
@ Dins;
~:
तेरे बिन अब जिया ना जाये,
सुकुन इस दिल को कहीं ना आये ,
तेरी ही मोहब्बत में जी रहे हैं,
वरना ये ज़माना हमें रास ना आये,
आ जाओ मेरी पनाह में तुम,
सुबहो शाम तुम्हारी याद सताये,
तुम्हारे बिन अब जीया ना जाये ,
खडे रह्ते हैं गलियारे में अक्सर,
के कहीं तु हमें नज़र आ जाये,
तेरी बेपनाह मोहब्बत कि प्यारी,
सोहबत हमे कभी-कहीं मिल जाये,
सुना करता हूं हर आहट बडे़ ध्यान से,
कहीं दरवाज़े पे तेरी दस्तक़ ना आ जाये,
तेरे बिन अब जिया ना जाये!
तेरे बिन अब जिया ना जाये!
तेरे बिन अब जिया ना जाये!
@ Dins'
~: