Friday, October 1, 2010

जय बोलो रे बोलो हिन्द की!


ना मुहम्मद कि, ना गोविन्द की,
जय बोलो रे बोलो हिन्द की!

ना राग में ना द्वेष में,
यकीं है हमें हमारे परिवेश में,
गेरुआ हो या हरित,
नहीं ये रंग मतभेद के,
तेरी मीनारें, हैं मेरी दीपशिला,
इन बातों से अबतक हमें क्या है मिला!

ना मुहम्मद कि, ना गोविन्द की,
जय बोलो रे बोलो हिन्द की!

अरे राम में है छिपा 'मरा',
अल्लाह में है देखो 'हल्ला(अ)',
क्यों पड़ें इन शब्दों के फेर में,
जिसने हमें कुछ भी तो न दिया,
दिया है तो बस मौतें बेटे-भाइयों की,
चीखें माँओं की, मांगें उजड़ी बहनों की!

ना मुहम्मद कि, ना गोविन्द की,
जय बोलो रे बोलो हिन्द की!

दिनेश'

2 comments:

  1. जय बोलो रे बोलो हिन्द की!
    आप की रचना चोरी हो गयी है ..... इस लिंक पर जाकर देख ले ..
    http://chorikablog.blogspot.com/2010/10/blog-post_5768.html

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  2. बनती चोर जी, हम लिखते ही इसलिए हैं कि कोई चुरा ले....
    चुरा कर उसमें से कुछ अपना ले...

    पर अब चुरा तो लिए, लेकिन कहाँ से चुराए हैं यह अपने ब्लॉग पर आने वाले महानुभावों को भी पता चलने का इंतजाम करते तो ज्यादा ख़ुशी मिलती...
    जो ब्लॉग के लेख आप चुराते हैं उनका लिंक भी साथ दिखाया करें...

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