Saturday, January 30, 2010

What makes one happy?


Money...; I think no.
There are many who
spent whole life in poverty,
but still are happy within!

Love...; maybe not.
There are some full of
hatred for whole life,
And Happy living with it!

Dream...; think it again.
Does persons blind by birth
can experience it at all?
They live happily without it!

Success...; what defines it?
What seems Success to one,
Means nothing to others,
It is relative from person to person!

Spirituality...; really, is it?
Think of nonreligious persons,
they have their own beliefs,
Quite Happy they are with it!

Comfort...; no it's so not.
Look at hardworking
Farmers, Labours, soldiers,
They can't be happy
without discharging their duties!

Popularity...; Hmmmmm.
Nearly 99% of the world
populations are commoner,
The most are happy-go-lucky!

Happiness shall not be searched
elsewhere; it lies within one's self!

@ Dins'

Friday, January 29, 2010

जीवन में हार तभी मानना ...

जीवन में हार तभी मानना जब -

अँधेरी घनी रात के बाद,
सूर्य ने रोशनी न बिखेरा हो!

ज्येष्ठ की तपती गर्मी के बाद,
बादलों ने धरा को न भिगोया हो!

घनघोर अकाल के बाद -
धरती से फिर कोई बीज,
कभी अंकुरित ही न हुआ हो!

आंधी में घरोंदा उजड़ने पर भी,
पंक्षी ने फिर घोसला न बांधा हो!

चट्टानों से टकरा चूर होकर भी,
लहरें फिर किनारे ना आयी हों!

बच्चा पहली बार खड़ा होने की -
कोशिश में बार-बार गिरकर भी,
कोशिश करना छोड़ दिया हो!


@ Dins'

Tuesday, January 26, 2010

क्यों कर मनाएँ गणतंत्र दिवस???

क्या कोई बताएगा मुझे की क्यों कर
मनाएँ गणतंत्र दिवस?


जबकि कहीं भी नजर नहीं आता कोई तंत्र -
जो संचालित हो रहा हो हर एक गण-गण से,
हाँ! कहने को तो प्रतिनिधि हमनें ही भेजे है,
एक-एक जोड़ कर बहुमत से विजयश्री किये हैं,
और वे तो प्रति-जन मानस के हित बिसराकर,
अपने लिए ही निधि जुटाने में व्यस्त हो गए हैं,
यक़ीनन वे प्रति-निधि भी इसीलिए कहलाते हैं,
क्योंकि, प्रति जनमानस की निधि उनके ही,
कई तिजोरियों में जाकर कैद हो जाती है,
हम ठीक से जानते भी नहीं अपने संवैधानिक अधिकार,
नहीं समझते अपने संवैधानिक कर्तव्य,
हैं मनाते फिर भी गणतंत्र दिवस हर साल...!


क्या कोई बताएगा मुझे की क्यों कर,
मैं कहुं शुभ गणतंत्र दिवस?


जबकी देश का गण-गण भुखमरी, मुफलिसी,
असुरक्षा, भ्रष्टाचार एवं हिंसा इत्यादि से दुखी है,
जहाँ हर गण में भेद भाव के बीज अंकुरित करने,
की कोशिश सारे चरम तक पर कर गयी हो,
जहाँ स्त्री का नारीत्व रसुकवालों की गिरफ्त में हो,
बच्चों का किसी न किसी रूप में शोषण होता हो,
देश के शहीदों को भी उचित सम्मान न मिल रहा हो,
उनके विधवा एवं परिवार को मुआवजा न मिल रहा हो,
जहाँ हर राज्य खुद को देश से अलग कर देख रहा हो,
केंद्र राज्यों का बंटवारा करने में जुटा हो,
नहीं उठाते हम कोई जागरुक कदम विरोध में,
हैं मनाते फिर भी गणतंत्र दिवस हर साल...!


फिर भी आप सुनना ही चाहते हैं तो चलिए,
आप सभी गणों को गणतंत्र दिवस की शुभ कमाना!!!


~~~~~~~~~~~~~~
- दिनेश सरोज

Sunday, January 24, 2010

ज़रा सोचें!!!

हम मनुष्य कर रहे सदियों से-
पालनहार प्रकृति से खिलवाड़!

कभी-कहीं बाँधते अल्हड़ नदी की धार,
तो कहीं करते विशाल वृक्षों पर वार,
यहाँ तक की पर्वतों को भी दिया उखाड़!

जहाँ पनपते कुकुरमुत्ते, भंवरों के छत्ते,
और बसते चुल-बुली चिड़ियों के घरोंदे,
वहां खड़े हैं सैकड़ों गगनचुम्बी इमारतें!

बेचारे पंछी भी देखो हो रहे हमसे पस्त,
जंगल हुए नष्ट, असहाय जानवर भी त्रस्त,
क्योंकि हम फैला रहे सर्वज्ञ अपना ही साम्राज्य!

जुटाने में लगे है एसो आराम के सारे सामान,
घरों में तो कर लिया बर्फ ज़माने का प्रावधान,
पर कभी सोचा क्या होगा हिमालय का अंजाम?

अजी, ये कैसी प्रगती कर रहे है हम जरा सोचें,
अपने ही अंतरात्मा में इन सवालों का जवाब खोजें,
इस विकसीत युग में भी क्यों है हमें महाप्रलय का डर???

@ Dins'