थक के न हार ऐ मुसाफिर,
यूँ बैठ जाने से मंजिल न मिलेगी |
टूटे हुए कांच के टुकड़ों में,
तुझे सूरत ठीक से न दिखेगी |
तू यूँ ही रोता रहा गर'
किसी की बेवफाई पर,
तो रुन्धाई आँखों से
वफ़ा की मूरत न दिखेगी |
यूँ बैठ जाने से मंजिल न मिलेगी |
टूटे हुए कांच के टुकड़ों में,
तुझे सूरत ठीक से न दिखेगी |
तू यूँ ही रोता रहा गर'
किसी की बेवफाई पर,
तो रुन्धाई आँखों से
वफ़ा की मूरत न दिखेगी |
- दिनेश सरोज
छवि साभार : गूगल छवि
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