Monday, January 24, 2011

वफ़ा की मूरत...!

थक के न हार ऐ मुसाफिर,
यूँ बैठ जाने से मंजिल न मिलेगी | 

टूटे हुए कांच के टुकड़ों में,
तुझे सूरत ठीक से न दिखेगी |

तू यूँ ही रोता रहा गर'
किसी की बेवफाई पर,
तो रुन्धाई आँखों से
वफ़ा की मूरत न दिखेगी | 

- दिनेश सरोज
छवि साभार : गूगल छवि

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