Monday, January 3, 2011

वफ़ा की उम्मीद

याद उनकी जिन्दा रखी है हमने अब भी,
उफ़नते सिने की ज्वाला से बचा कर,
तक़दीर ने छिनना चाहा उन्हें हमसे,
हर टूटती सांस से, बांधे रखा उन्हें हमने,
आरज़ू तो न हुई पूरी पाने की उसे,
फिर भी आस का सिलसिला टूटनें न दिया,
बेवफा भी तो न कह सकेंगे हम उन्हें,
हमसे ही, देर हुई बातें दिल की कहने में,
वफ़ा की उम्मीद तो तभी कर सकते थे हम,
जब जिंदगी में कभी उनके हो पाते...!

- दिनेश सरोज

छवि साभार : गूगल छवि

No comments:

Post a Comment