वे हरकतों पे हरकतें करते ही रहे,हमने भी तय कर लिया था सहते रहेंगे,कुछ ना कहेंगे हरकतों को उनके,वे भी ज़ालिम थे बड़े जुनूनी ऐसे,अपनी हरकतों से बाज़ ना आए कभी,जान चुके थे की हमने है ज़िद ठानी,चुप रहने की, कुछ ना कहने की,अब उनकी हिम्मतों को तो जैसे,पर ही लग गया हो, वो उड़ने लगे अब तो,और हरकतों को भी अपने हवा, लगे देने,महारत हासिल कर ली हरकतें करनें की,अब तो वे खुद को तीस-मार-खाँ और हमें,ऐरा-गैरा उठाई-गिर समझने लगे,हमने सोचा चलो छोड़ो यार अब तो,
इनके हरकतों के आदी हो चले हम भी,फिर यूँ ही इक दिन हमने सोचा के चलो,कुछ हरकतें हम भी क्यूँ ना कर लें,तो हम भी हो गए शुरू और यकीं मानिए,जो हमने की शुरूआत हरकतों की तो,अजी तोते-पे-तोते उड़ने लगे जनाब उनके...!
- दिनेश सरोज
छवि साभार : गूगल छवि
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