बनती नहीं है मीनारें ख्वाब सजाने भरसे,
न जाने कितने धन, वक्त और बल,
उन्हें बानाते-सजाते, लग जाते हैं!
ख्वाब सजती तो है दो आँखों में पहले,
पर चमचमाती है जब कई आंखों में,
तो साकार होने के पथ पर चल पड़ती है!
दो पग बढ़ते है पगडण्डी से हो गुजर,
कई पग मिल-संग जब बढाते कदम,
ईक राह नई, आप ही बनती चली जाती है!
कुछ धारा मिलकर आगे नदी बन जाती,
मिलकर कई नदियाँ जब एक होती हैं,
तो समंदर की असीम गहराई बन जाती हैं!
पाषाण टकराए कहीं तो चिंगारी निकली,
मिली लकडी से तो हुई प्रज्वलित अग्नि,
फैली जो सारे वन तो दावानल बन जाती है!
@ Dins'
न जाने कितने धन, वक्त और बल,
उन्हें बानाते-सजाते, लग जाते हैं!
ख्वाब सजती तो है दो आँखों में पहले,
पर चमचमाती है जब कई आंखों में,
तो साकार होने के पथ पर चल पड़ती है!
दो पग बढ़ते है पगडण्डी से हो गुजर,
कई पग मिल-संग जब बढाते कदम,
ईक राह नई, आप ही बनती चली जाती है!
कुछ धारा मिलकर आगे नदी बन जाती,
मिलकर कई नदियाँ जब एक होती हैं,
तो समंदर की असीम गहराई बन जाती हैं!
पाषाण टकराए कहीं तो चिंगारी निकली,
मिली लकडी से तो हुई प्रज्वलित अग्नि,
फैली जो सारे वन तो दावानल बन जाती है!
@ Dins'
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