Saturday, July 25, 2009

आत्ममंथन

चले जायेंगे जब यहाँ से,
सोचा है के याद आएंगे,
इस जहाँ को किस तरहा से?

जिए तो हम खूब अपनी जिंदगी,
अरे! क्या कभी देखा है,
मुफ़लिसों की बस्ती?


सभी अपनें तो है करीब मेरे,
पर किसे होगी मेरी कमी,
क्या कभी
ये पूछा है खुदसे?

हमारी तो बड़ी खुश-हाल
है जिंदगी,
क्या है तुम्हारा गम कभी,
पूछा है किसी से?

जिसे भी चाहा वो मेरे साथ है,
पर उसने क्या चाहा,
कभी तुमनें जाना है?

हम तो है आजाद पंछी,
कभी सोचा है तुमनें,
की क्या होती है दासता?

@ Dins'

1 comment:

  1. तू रहे न रहे जहाँ में लेकिन ए बन्दे,

    तेरा वजूद हर-इक दिल में धड़कता रहेगा,

    तू रहेगा जिन्दा सदा हमारे दिलों में,

    ये चमन बिखेरता रहेगा तेरी रवानी जहाँ में,
    सुंदर रचना!!!

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