Thursday, February 26, 2009

~: फुरसत कहाँ :~

गुजर जाते थे लम्हों-पे-लम्हें '
हमें वक्त का अंदाज़ ही चलता था,
पर अब है फुरसत कहाँ जो हम,
वक्त निकालें यारों खातिर|
तब होती थी गुफ्तगू अक्सर -
दिन कट जाते थे बातों ही बातों में,
अब तो महीनों-महीनें गुजर जाते हैं,
'हमें फुरसत नहीं पल भर भी-
यारों से एक मुलाक़ात का|


@ Dins'

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