Thursday, August 6, 2009

गम-ऐ-मुहब्बत

"गम-ए-मुहब्बत हमें भी था -
और शायद उन्हें भी...

दिल का लगाना खेल तो नहीं था -
मुहब्बत उनसे आज भी है...

आज दूर ही सही हमसे फिरभी -
वो हमारे जज्बात में तो है..."

@ Dins'

2 comments:

  1. yahi to pyar hai door ho ya najdik koi fark nahi padata hai..........sundar nazam

    ReplyDelete