Friday, September 12, 2008

-:मंजिल तुझसे दुर नहीं:-




-:मंजिल तुझसे दुर नहीं:-

यूँ ही बढा चल राही,
तू अपनी राह पर,
मंजिल तुझसे दुर नहीं |

तेरा अटूट साहस ही है,
तेरा सच्चा साथी,
ये सदा याद रखना |

अपने सामर्थ्य पर,
तु सदा ही,
अटल विश्वास रखना |

बाधाओं को समझना,
उनसे न घबराना कभी,
तोड़ उसका खुद खोजना |

आस न रखना औरों का,
तु अपने पुरुषार्थ पर,
सदा विश्वास रखना |

आदत बना लेना तुम,
जीत को अपनी,
और सदा जीतते रहना |

गम न करना,
कभी 'गर तुम,
सफल न हुए कभी |

चिंतन करना तुम,
कहाँ रही कमी और,
फिर प्रयत्न करना |

जीत को जिद बना लेना,
डटे रहना लगन से,

जीत अवश्य ही होगी,
तुम्हारी ये जान लो,
बस हौसला यूँ ही,
अपना बनाये रखना |

तुम खुद पर रखना,
भरोसा सदा बरकरार,
जीतोगे तुम ही -
हर बार, बारम्बार|

-दिनेश सरोज'

2 comments:

  1. Nice Kavita !!!!

    Do keep yourself expressed through such poems ....

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  2. प्रेरणादायी कविता. बहुत ही अच्छी तरह से रचना की गयी है .

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