Sunday, August 7, 2011

सिमटी रहे तू मुझमे



यूँ ही रहना इन बाँहों में,
न जाना दूरकहीं, मेरी 
सोहबत की छाँव से,
न होना दूर कभी |

कि बसती है तू ही 
इन निगाहों में, मेरी  
धड़कन भी है तू ही, 
कोई और नहीं |

मीठा सा अहसास तेरे 
स्पर्श का ओ सनम,
कभी न छूटे साथ तेरा,
सिमटी रहे तू मुझमे यूँही |


- दिनेश सरोज



छवि साभार: Salina Trevino

8 comments:

  1. बहुत ही खुबसूरत प्यारी रचना....

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  2. SHANDAR..pehli baar aapke blog pe aana hua accha laga..apne blog pe amantran ke satu..

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  3. आदरणीय डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक" जी एवं चर्चा मंच का तहे दिल से कोटि कोटि धन्यवाद की आपने मेरी प्रस्तुति को चर्चा मंच पर प्रस्तुत करने का सम्मान दिया...

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  4. आप सभी का तहे दिल-से धन्यवाद...!

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  5. waah...
    wakai wo simati hai...
    bahut hi pyaari rachna...

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