न जाना दूरकहीं, मेरी
सोहबत की छाँव से,
न होना दूर कभी |
कि बसती है तू ही
इन निगाहों में, मेरी
धड़कन भी है तू ही,
कोई और नहीं |
मीठा सा अहसास तेरे
स्पर्श का ओ सनम,
कभी न छूटे साथ तेरा,
सिमटी रहे तू मुझमे यूँही |
- दिनेश सरोज
बहुत ही खुबसूरत प्यारी रचना....
ReplyDeleteSHANDAR..pehli baar aapke blog pe aana hua accha laga..apne blog pe amantran ke satu..
ReplyDeletebhaut hi sundar....
ReplyDeleteआदरणीय डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक" जी एवं चर्चा मंच का तहे दिल से कोटि कोटि धन्यवाद की आपने मेरी प्रस्तुति को चर्चा मंच पर प्रस्तुत करने का सम्मान दिया...
ReplyDeleteबढ़िया...
ReplyDeleteआप सभी का तहे दिल-से धन्यवाद...!
ReplyDeletebadhiya prastuti
ReplyDeletewaah...
ReplyDeletewakai wo simati hai...
bahut hi pyaari rachna...