Monday, January 24, 2011

वफ़ा की मूरत...!

थक के न हार ऐ मुसाफिर,
यूँ बैठ जाने से मंजिल न मिलेगी | 

टूटे हुए कांच के टुकड़ों में,
तुझे सूरत ठीक से न दिखेगी |

तू यूँ ही रोता रहा गर'
किसी की बेवफाई पर,
तो रुन्धाई आँखों से
वफ़ा की मूरत न दिखेगी | 

- दिनेश सरोज
छवि साभार : गूगल छवि

Thursday, January 6, 2011

हरकतों पे हरकतें

हरकतों को नज़रअंदाज़ करते रहे हम,
वे हरकतों पे हरकतें करते ही रहे,
हमने भी तय कर लिया था सहते रहेंगे,
कुछ ना कहेंगे हरकतों को उनके,
वे भी ज़ालिम थे बड़े जुनूनी ऐसे,
अपनी हरकतों से बाज़ ना आए कभी,
जान चुके थे की हमने है ज़िद ठानी,
चुप रहने की, कुछ ना कहने की,
अब उनकी हिम्मतों को तो जैसे,
पर ही लग गया हो, वो उड़ने लगे अब तो,
और हरकतों को भी अपने हवा, लगे देने,
महारत हासिल कर ली हरकतें करनें की,
अब तो वे खुद को तीस-मार-खाँ और हमें,
ऐरा-गैरा उठाई-गिर समझने लगे,
हमने सोचा चलो छोड़ो यार अब तो,
इनके हरकतों के आदी हो चले हम भी,
फिर यूँ ही इक दिन हमने सोचा के चलो,
कुछ हरकतें हम भी क्यूँ ना कर लें,
तो हम भी हो गए शुरू और यकीं मानिए,
जो हमने की शुरूआत हरकतों की तो,
अजी तोते-पे-तोते उड़ने लगे जनाब उनके...!

- दिनेश सरोज

 छवि साभार : गूगल छवि

Monday, January 3, 2011

वफ़ा की उम्मीद

याद उनकी जिन्दा रखी है हमने अब भी,
उफ़नते सिने की ज्वाला से बचा कर,
तक़दीर ने छिनना चाहा उन्हें हमसे,
हर टूटती सांस से, बांधे रखा उन्हें हमने,
आरज़ू तो न हुई पूरी पाने की उसे,
फिर भी आस का सिलसिला टूटनें न दिया,
बेवफा भी तो न कह सकेंगे हम उन्हें,
हमसे ही, देर हुई बातें दिल की कहने में,
वफ़ा की उम्मीद तो तभी कर सकते थे हम,
जब जिंदगी में कभी उनके हो पाते...!

- दिनेश सरोज

छवि साभार : गूगल छवि